राधा जी कौन हैं? (एक साधारण भक्त का अनुभव, विचार और राधा प्रेम की अनुभूति)
बहुत लोगों के मन में ये सवाल रहता है कि “आख़िर राधा जी कौन हैं?”
मैंने देखा है कि इस सवाल पर लोग बहस भी करते हैं।
कोई कहता है – राधा जी सिर्फ़ कृष्ण की प्रिय हैं,
कोई कहता है – उनका शास्त्रों में उल्लेख नहीं हैं ,
तो कोई कहता है – ये सब कल्पना है।
सच बताऊँ तो एक समय मैं भी उलझन में था।
मुझे भी लगता था कि अगर कृष्ण भगवान हैं,
तो राधा जी का स्थान क्या है?
लेकिन जैसे-जैसे जीवन में भक्ति आई,
जैसे-जैसे संतों की संगति मिली,
वैसे-वैसे ये सवाल अपने आप बदलने लगा।
अब सवाल ये नहीं रहा कि राधा जी कौन हैं,
बल्कि सवाल ये हो गया कि
“मैं राधा जी को कितना समझ पाया हूँ?”
जब पहली बार ये सवाल दिल में उठा
आपकी तरह मेरे मन में भी कभी-कभी बेचैनी रहती थी।
मन भगवान को ढूँढता था,
लेकिन रास्ता समझ में नहीं आता था।
मैं मंदिर जाता था,
कृष्ण की मूर्ति के सामने खड़ा होता था,
लेकिन दिल में कोई खालीपन सा रहता था।
तभी किसी ने मुझसे कहा –
“कभी राधा नाम लेकर देखो।”
पहले मुझे ये बात साधारण लगी।
लेकिन जब मैंने “राधे राधे” कहना शुरू किया,
तो एक अजीब सा सुकून मिलने लगा।
मैं समझ नहीं पाया कि ऐसा क्यों हो रहा है,
लेकिन इतना ज़रूर समझ गया कि
राधा नाम में कुछ अलग है।
राधा जी कौन हैं? – जो मुझे समझ आया
अगर मुझसे आज कोई पूछे कि
“राधा जी कौन हैं?”
तो मैं शास्त्र की भाषा में नहीं,
अपने अनुभव की भाषा में जवाब दूँगा।
राधा जी प्रेम हैं।
ऐसा प्रेम जो माँ जैसा भी है,
सखी जैसा भी है
और ऐसा प्रेम जो कुछ माँगता नहीं।
कृष्ण अगर भगवान हैं,
तो राधा वो भाव हैं
जिससे भगवान भी बंध जाते हैं।
प्रेमानंद जी महाराज के साथ का अनुभव
अब मैं वो बात साझा कर रहा हूँ
जिसने मेरी सोच को पूरी तरह बदल दिया।
एक बार Premanand Ji Maharaj के satsang में बैठने का सौभाग्य मिला।
मैं बस चुपचाप पीछे बैठा था।
महाराज जी बहुत सरल शब्दों में बोल रहे थे,
लेकिन हर शब्द सीधे दिल में उतर रहा था।
उन्होंने कहा:
“कृष्ण को पाना है तो राधा से होकर जाना पड़ेगा।
क्योंकि कृष्ण भगवान हैं,
लेकिन राधा माँ हैं।”
ये बात सुनकर मैं अंदर से हिल गया।
महाराज जी ने आगे कहा:
“राधा से डर नहीं लगता,
राधा से शिकायत की जा सकती है,
राधा के सामने रोया जा सकता है।”
उस दिन मुझे पहली बार समझ आया कि
राधा भक्ति इतनी सरल क्यों है।
🌼 क्या राधा जी सिर्फ़ कृष्ण की प्रेमिका हैं?
लोग अक्सर यहीं अटक जाते हैं।
और यहीं से भ्रम शुरू होता है।
मैं भी पहले यही सोचता था।
लेकिन प्रेमानंद जी महाराज की बातों से ये समझ आया कि
राधा जी सांसारिक प्रेमिका नहीं हैं।
वे ह्लादिनी शक्ति हैं —
यानी वह शक्ति जिससे स्वयं भगवान आनंद लेते हैं।
सोचो ज़रा,
अगर भगवान को भी आनंद चाहिए,
तो वो आनंद कौन देता है?
👉 वही हैं राधा।
🌸 राधा-कृष्ण का प्रेम – जो सिखाता है खो जाना ( Forget yourself)
राधा-कृष्ण का प्रेम
पाने का नहीं,
खो जाने का प्रेम है।
इस प्रेम में:
“मुझे क्या मिलेगा” नहीं होता
“लोग क्या कहेंगे” नहीं होता
बस एक भाव होता है –
“जो है, सब तेरा है।”
Premanand Ji Maharaj अक्सर कहते हैं:
“जहाँ ‘मैं’ बचा, वहाँ भक्ति नहीं।”
और सच में,
राधा प्रेम हमें यही सिखाता है।
🌺राधा नाम की महिमा – जो अनुभव से समझ आती है
शास्त्रों में लिखा है:
“राधा नाम, कृष्ण नाम से भी मधुर है।”
पहले मुझे ये बात ज़्यादा लगती थी।
लेकिन अब नहीं।
क्योंकि जब मन बहुत भारी होता है,
तब “कृष्ण” कहने से पहले
अपने आप “राधे” निकलता है।
शायद इसलिए,
क्योंकि राधा नाम में
माँ जैसा अपनापन है।
क्या शास्त्रों में राधा जी का उल्लेख है?
हाँ, है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण, गर्ग संहिता, पद्म पुराण —
इनमें राधा रानी का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
लेकिन आज मैं ये कहता हूँ:
राधा जी को समझने के लिए ग्रंथ नहीं,
अनुभव चाहिए।
🌺 राधा भक्ति क्यों इतनी सरल है?
क्योंकि राधा रानी:
योग्य-अयोग्य नहीं देखतीं
गलती नहीं गिनतीं
बस भाव देखती हैं
Premanand Ji Maharaj कहते हैं:
“अगर राधा प्रसन्न,
तो कृष्ण अपने आप प्रसन्न।”
🌸 राधा जी का स्वरूप – जैसा मुझे महसूस हुआ
राधा जी को मैंने कभी आँखों से नहीं देखा,
लेकिन दिल से कई बार महसूस किया है।
जब:
मन बहुत टूट जाता है
कोई रास्ता नहीं दिखता
तब ऐसा लगता है
जैसे कोई चुपचाप सिर पर हाथ रख दे।
शायद वही राधा कृपा है।
इस सब का निष्कर्ष – जो दिल से निकला
राधा जी कोई तर्क नहीं हैं।
वे अनुभव हैं।
अगर आप बहुत सवाल पूछते हैं,
तो शायद उत्तर न मिले।
लेकिन अगर आप थककर बस इतना कह दें —
“राधे…”
तो हो सकता है
आपको वो शांति मिल जाए
जिसे आप ढूँढ रहे थे।
और जहाँ शांति है,
वहीं कृष्ण हैं।
भक्तों के मन में उठने वाले प्रश्न (FAQ)
1. मेरे मन में अक्सर ये सवाल आता है – राधा जी आखिर हैं कौन?
सच कहूँ तो ये सवाल लगभग हर भक्त के मन में आता है। राधा जी केवल किसी कथा की पात्र नहीं हैं, बल्कि वे प्रेम का वो स्वरूप हैं, जिसे समझने के लिए तर्क नहीं, भाव चाहिए। जैसे-जैसे भक्ति गहरी होती जाती है, राधा जी अपने आप समझ में आने लगती हैं।
2. क्या राधा जी सच में श्रीकृष्ण से अलग हैं या सब प्रतीक है?
ये सवाल मेरे मन में भी कई बार आया था। लेकिन संतों की वाणी सुनकर समझ आया कि राधा और कृष्ण अलग नहीं हैं। वे एक ही सत्य के दो रूप हैं — जैसे दीपक और उसकी लौ।
3. लोग कहते हैं शास्त्रों में राधा जी का नाम नहीं मिलता, फिर कैसे मानें?
हो सकता है कुछ ग्रंथों में नाम न मिले, लेकिन कई पुराणों और संत साहित्य में राधा जी का स्पष्ट उल्लेख है। और सच तो ये है कि प्रेम को प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती — जो दिल से जुड़ जाए, वही सत्य होता है।

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